
देश (समाचार मित्र) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (SC /ST) के लोगों का सामाजिक शोषण रोकने बनाए गए कानून का दुरुपयोग होने से न्यायालय चिंतित है। यूपी की राजधानी लखनऊ में एससी-एसटी एक्ट में फर्जी मुकदमा दर्ज कराने के दोषी को 5 साल की कैद की सजा हुई है। एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने 5 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
यूपी के लखनऊ में जमीन विवाद के चलते एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा लिखवाने के मामले में दोषी करार दिए गए विकास कुमार को एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने 5 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिया है कि इस मामले मे यदि कोई राहत धनराशि दी गयी हो तो वापस ली जाये।
अभियोजन पक्ष से अधिवक्ता अरविंद मिश्रा ने बताया कि विकास कुमार ने 29 जून 2019 को थाना पीजीआई में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। जिसमें आरोप लगाया कि उसकी जमीन पर कब्जा करने की नियत से ओम शंकर यादव, अरुण कुमार, नीतू यादव व अखिलेश पाल आये और धमकाते हुए कहा कि इस जमीन पर हम कब्जा कर लेंगे। यहां से भाग जाओ नहीं तो इसी जमीन मे दफना देंगे और जाति सूचक गालियां देते हुए उसको भगा दिया।
विवेचना के दौरान यह पाया गया कि घटना के समय, घटना स्थल पर आरोपियों की मौजूदगी नहीं थी। इसके अतिरिक्त गवाहों ने भी घटना होने से इनकार किया। यह भी बताया कि दोषी विकास कुमार के परिवार की जमीन पर बैंक से कर्ज लिया गया था। जब बैंक का कर्जा अदा नहीं किया गया तो बैंक वालों ने उसकी जमीन की नीलामी कर दी थी। उस नीलामी के जरिये आरोपी ओम शंकर के भांजे कमलेश ने जमीन खरीदी थी, उसी जमीन के विवाद में उसके भांजे की हत्या तक कर दी गयी थी। जिसके संबंध में न्यायालय मे मुकदमा विचाराधीन है। आरोपी ओम शंकर न्यायालय में उस मुकदमें की पैरवी कर रहा था। दबाव बनाने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज कराया था।





