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सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में बंद कैदियों के लिए चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता का ब्यौरा मांगा, कही यह बड़ी बात!

नई दिल्ली (समाचार मित्र) सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से जेल में बंद कैदियों को मुहैया कराई जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं का ब्यौरा मांगा है। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने सरकारों से कैदियों को दिए जाने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण के बारे में भी जानकारी मुहैया कराने को कहा है।

1382 जेलों में अमानवीय स्थितियों पर वर्ष 2013 में लिए गए स्वत: संज्ञान मामले में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने यह निर्देश दिया।

मंगलवार को जेल सुधार के मुद्दे पर दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने सुनवाई की। जब इस पर सुनवाई शुरू हुई तो पीठ ने नोट किया कि छठी, सातवीं और आठवीं प्रारंभिक रिपोर्ट और पिछले साल दिसंबर की रिपोर्ट का अंतिम सारांश शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त जेल सुधार समिति द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

पीठ ने रिपोर्ट के अंतिम सारांश में दी गईं बातों के मद्देनजर हिरासत में महिलाओं और बच्चों, ट्रांसजेंडर कैदियों और मौत की सजा वाले दोषियों के मुद्दों पर वकील की सहायता मांगी है। अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी। साथ ही पीठ ने न्याय मित्र गौरव अग्रवाल से केंद्र, राज्य सरकारों और संबंधित राज्यों के जेल महानिदेशक की ओर से दी गई जानकारियों को एकत्रित करने के लिए कहा है।

25 सितंबर 2018 के आदेश के संदर्भ में अपनी सिफारिशें देने के लिए बनाई गई समिति को भेजी गई संदर्भ की शर्तों को देखने के बाद पीठ ने 29 अगस्त को ये निर्देश पारित किए। पीठ ने कहा, हमारी राय है कि कुछ अन्य मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनमें जेल में कैदियों को चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता, समाज में वापस जाने के लिए उपयोगी बनाने के लिए उन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण देना और जेल परिसर में पर्याप्त आईटी बुनियादी ढांचा शामिल है। आईटी बुनियादी ढांचा आभासी अदालती कार्यवाही के संचालन और परिवार के सदस्यों के मुलाकात के अधिकार को सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए आवश्यक है।

मंगलवार को, सुनवाई के दौरान पीठ ने वकील गौरव अग्रवाल से भारत संघ और राज्य सरकारों के वकील के साथ रिपोर्ट की प्रतियां साझा करने के लिए कहा। बता दें कि गौरव अग्रवाल जो इस मामले में एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) के रूप में अदालत की सहायता कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट का अध्ययन करने और सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत की सहायता करने के लिए पक्षों के वकीलों को कुछ समय मांगा गया है। पीठ ने मामले को 26 सितंबर को फिर से सुनवाई के लिए पोस्ट किया है।

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी समिति
गौरतलब है कि 25 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में जेल सुधारों के पहलू पर गौर करने और जेलों में भीड़भाड़ समेत कई पहलुओं पर सिफारिशें करने के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व जस्टिस अमिताभ रॉय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति में पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के पुलिस महानिरीक्षक और दिल्ली की तिहाड़ जेल के महानिदेशक भी शामिल थे। इसने जेलों और सुधार गृहों में भीड़भाड़ की सीमा और विचाराधीन समीक्षा समितियों के कामकाज, कानूनी सहायता और सलाह की उपलब्धता, छूट, पैरोल की मंजूरी के साथ-साथ जेलों और सुधार गृहों में हिंसा के पहलू और वहां चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता की जांच की है।

Nimesh Kumar Rathore

Chief Editor, Mob. 7587031310
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