यदि एक सक्षम व्यक्ति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, तो आश्रित मां का क्यों नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक वृद्ध महिला के बेटों की ओर से उपायुक्त के एक आदेश, जिसमें बेटों को माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत अपनी मां को 10,000 रुपये की भरण-पोषण राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था, के खिलाफ दायर याचिका को खारिज़ कर दिया। जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने गोपाल और अन्य द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने उस आदेश पर सवाल उठाया था, जिसमें उन्हें अपनी 84 वर्षीय मां को 10,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। मां उनकी बहन के साथ रह रही हैं।
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कोर्ट ने कहा, “यदि एक सक्षम व्यक्ति अपनी आश्रित पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि आश्रित मां के मामले में ऐसा नियम लागू न हो। इसके विपरीत तर्क कानून और धर्म का उल्लंघन है, जिससे याचिकाकर्ता संबंधित हैं।”
ब्रह्माण्ड पुराण के एक श्लोक का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, “अच्छा विचार यह है कि किसी को सर्वशक्तिमान की पूजा करने से पहले अपने माता-पिता, मेहमानों और गुरुओं का सम्मान और सेवा करनी चाहिए। सदियों से इस भूमि की यही परंपरा रही है।”
“बिना की खुशफहमी के इस कोर्ट यह पाया कि आजकल, युवाओं का एक वर्ग वृद्ध और बीमार माता-पिता की देखभाल नहीं कर पा रहा है और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। यह कोई सुखद विकास नहीं है।”