कटघोरा से मदन दास की रिपोर्ट
कोरबा (समाचार मित्र) आंदोलन कोरबा जिला कोयलाधानी के नाम से पूरे देश में जाना जाता है , लेकिन राष्ट्रहित में अपनी पुरखों की जमीन देने वाले भूमि पुत्र आज अपनी रोजगार , मुआवजा , पुर्नवास के लिए दर-दर भटक रहे हैं । कोरबा जिले में खदान की शुरुआत 60 के दशक में शुरू हुई है , तब से लगातार उत्खनन हेतु भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है । पिछले कई दशक से भूविस्थापित रोजगार , मुआवजा , पुर्नवास एवं अन्य समस्याओं के लिए एरिया स्तर पर आवेदन निवेदन एवं धरना प्रदर्शन कर चुके हैं , लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर महाप्रबंधक के द्वारा मुख्यालय से संबंधित मांग बताते हुए समस्या का निराकरण करने में असमर्थता जाहिर की जाती है । जिसके परिणाम स्वरुप चारों परियोजना कोरबा , कुसमुंडा , गेवरा , दीपका के भूविस्थापित अपनी मांगों शिकायतों के निराकरण हेतु उग्र आन्दोलन के लिए तैयार हो गए हैं । पिछले 6–7 वर्षों से लगातार समस्याओं के निराकरण हेतु जिलाधीश महोदय के द्वारा बैठक कर निराकरण हेतु आदेश एवं निर्देश जारी किए गए थे । जिस समय जमीन का अधिग्रहण हुआ उसी समय तय नियमों के आधार पर रोजगार देने हेतु भी निर्देश जिलाधीश महोदय के द्वारा पुर्नवास के बैठक में दी गई थी । बैठक के दौरान प्रबंधन के अधिकारी सहमति जताते हुए अग्रिम कार्यवाही करने का आश्वासन देते रहे हैं । मुख्यालय के अधिकारी भी प्रशासन के निर्देश का पालन करने की हामी भरते रहे , लेकिन दुर्भाग्य की बात है मुख्यालय के अधिकारी एवम क्षेत्रीय प्रबंधन के अधिकारी प्रशासन की आदेशों एवं निर्देशों की अवहेलना करते आ रहे हैं । जिससे नाराज़ होकर भुविस्थापित 29 जनवरी को एसईसीएल मुख्यालय का घेराव गेट जाम करेंगे ।पुराने रोजगार प्रकरण मे ग्रामीण , प्रबंधन एवम प्रशासन के बीच सहमति के आधार पर रोजगार , पुर्नवास दी जाती थी , क्योंकि 1991 से पहले कोई पुनर्वास नीति नहीं था । पुराने प्रकरणों में प्रमुख रूप से अर्जन के बाद जन्म नामांकित व्यक्ति का रोजगार हेतु पात्रता न होना, अलग-अलग खातेदारों के जमीन को जोड़कर एक रोजगार प्रदान कर रोजगार की संख्या को कम करना एवम रोजगार से वंचित करना , शासन से प्रदत्त भूमि स्वामी हक प्राप्त जमीन पर पहले रोजगार प्रदान किया जाता था अब प्रदान नही करना, राज्यशासन द्वारा रोजगार पात्रता सत्यापन तय करने के बाद भी नामांतरण अर्जन आवेदन तिथि के बाद मे होने का हवाला देकर रोजगार से अपात्र करना परन्तु मुआवजा प्राप्ति के लिए पात्र बताते हुए भुगतान करना । पात्रता के मापदंड पूर्ण करने वाले नामांकित व्यक्ति को भी रोजगार प्रदान नहीं किया जा रहा है । नए अर्जन में कंपनी के द्वारा लैंड बैंक बनाने की नियत से उत्खनन से 10–15 वर्ष पूर्व जमीन अधिग्रहण कर ली जाती है एवम धारा 9 (1) प्रकाशन तिथि को आधार मानकर पुर्नवास , रोजगार एवं मुआवजा का निर्धारण किया जाता है । अर्जन के 10–15 साल बाद रोजगार , मुआवजा , पुर्नवास एवम परिसंपत्तियों का मूल्यांकन की प्रक्रिया चालू करने से जटिल समस्याए निर्मित हो रहीं है । अर्जन के बाद प्रक्रिया में विलंब करने से लोग उम्र दराज हो गए हैं । अर्जन के समय जो व्यक्ति नाबालिक थे परिसंपत्तियों के मूल्यांकन समय 30–32 वर्ष होने के बाद भी पुनर्वास के लिए अपात्र माने जा रहे हैं क्योंकि अर्जन के वक्त 15 साल पूर्व नाबालिक थे । परिसंपत्तियो का मूल्यांकन एवं भूमि का मुआवजा निर्धारण अर्जन के समय प्रचलित बाजार रेट के आधार पर किया जाता है । जिसके कारण वर्तमान दर से बहुत कम मुआवजा राशि प्राप्त हो रहा है । निजी भूमि के अलावा किसी भी दूसरे व्यक्ति के भूमि पर निर्मित मकान एवम शासकीय भूमि में निर्मित मकान पर सोलिशियम राशि प्रदान नहीं की जा रही है । जिसके कारण मुआवजा राशि आधी हो जा रही है । परिसंपत्तियों के मूल्यांकन में व्यापक पैमाने पर हेरा फेरी की जा रही है वास्तविक लोग कम मुआवजा बनाए जानें से परेशान है , जबकि गैर वाजिब अपात्र लोग सेटिंग कर लाखों–करोड़ों रूपया मुआवजा प्राप्त कर रहे हैं । नए अर्जन में कोल इंडिया पॉलिसी 2012 लागू किए जाने से ग्रामीण नाराज चल रहे हैं । इस इस पॉलिसी में छोटे खातेदार को रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है । ग्रामीण चाहते हैं कि कोल इंडिया पॉलिसी के स्थान पर राज्य की पॉलिसी के अनुरूप रोजगार उपलब्ध कराया जाए । सी एस आर के तहत मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने में भी कोताही बरती जा रही है । पंचायत प्रतिनिधि अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए प्रबंधन को आवेदन देते हैं परंतु प्रबंधन गुमराह करते हुए दायरे में नहीं आने का हवाला देकर सुविधाएं प्रदान नहीं कर रही है । यह समस्याएं विशेष कर कोरबा क्षेत्र के द्वारा निर्मित की जा रही है । अर्जित ग्राम के ग्रामीणों को जवाबदारी के साथ वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है । कार्य में क्षेत्रीय लोगों को प्राथमिकता देने के बजाय गैर प्रांतीय लोग ज्यादा कार्य कर रहे हैं । लगातार आंदोलन करने पर प्रबंधन के द्वारा खानापूर्ति के लिए प्रयास किये जा रहे हैं । ठेका कंपनी मे कार्यरत मजदूर एवं ड्राइवर को भी एचपीसी रेट प्रदान नहीं किया जा रहा है । सरायपाली बुडबुड , गेवरा , दीपका खदान में भी व्यापक पैमाने पर शोषण किया जा रहा है । कुछ ठेका कंपनी के द्वारा 26 दिन कार्य भी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है । अपनी सुविधा के अनुसार अचानक कार्य पर बुलाते हैं जिसके कारण हेल्पर और ड्राइवर बहुत परेशान है । कार्य के दौरान चुक होने पर नोटिस देकर कार्य से बैठा दिया जाता है । नियमानुसार एचपीसी रेट एवं कार्य प्रदान करने की बात कंपनी के प्रमुखों से करने पर कार्य से निकलने की धमकी दी जाती है । चारों परियोजना में कुछ ठेकेदार मजदूरो का अपने पसंदीदा बैंक में अकाउंट खुलवाकर एटीएम अपने पास रख लिए हैं , ताकि राशि कटौती कर भुगतान किया जाए एवम एवं कागजी कार्यवाही सही नजर आए । इस सब कार्य में प्रबंधन के अधिकारियों की मौन सहमति प्राप्त रहती है । ग्रामीण इन सब कारणों से परेशान होकर एसईसीएल मुख्यालय बिलासपुर का गेट जाम आंदोलन करेंगे । जिसमें चारों परियोजना के भुविस्थापित रहेंगे ।